कभी कभी ऊपर से स्वस्थ दिखने वाली महिला भी अंदर से कई बीमारियों की शिकार होती है । इन्ही अंदरूनी बीमारियों में एक ओवेरियन सिस्ट ( Ovarian cyst ) है जिसका पता शुरुआत में भले ही ना लगे पर गर्भधारण में बड़ी समस्या पैदा कर देता है । जिसका उचित इलाज कराना बहुत जरूरी बन जाता है । अंडाशय में गांठ की प्रॉब्लम से गर्भधारण नहीं हो पाता हैं । अंडाशय गांठ होती क्या है एवं इनके लक्षण तो आईये हम जानते हैं |-
गांठ तरल द्रव्यों से भरी थैली जैसी होती है । जो आपके शरीर के किसी भी हिस्सों में हो जाती है। शुरू में ये आकार में छोटी होती है पर धीरे धीरे बढ़कर बड़ा आकर भी ले लेती है तब शरीर को तकलीफ होने लग जाती है । अंडाशय की गांठ (ओवेरियन सिस्ट) भी ऐसी ही एक तरल पदार्थों की सिस्ट होती है जो अंडाशय में हो जाती है फिर धीरे धीरे विकसित होती है। अंडाशय में अंडे जमा रहते हैं।
और हर महीने लगभग एक अंडा निषेचित करते हैं। जब अंडा बड़ा हो जाता है तो तरल द्रव्यों से भरी सिस्ट (गांठ) अंडे के चारों तरफ फैल जाती है। ओवलुसन के समय बहुत से अंडे जिनमें (फॉलिकल्स) होते हैं, वे बढ़ना चालू हो जाते हैं फिर सबसे बड़ा फॉलिकल्स ( folicalC ) फूट जाता है तब इस प्रक्रिया को ओवुलेशन (ovulation ) कहा जाता है जो प्रेगनेंसी के लिए मुख्य माना गया है ।
कई बार डिंब विकसित होना तो शुरु हो जाता है, मगर यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाती। इसमें कुछ समय तक गांठ अंडाशय में रह जाती है और धीरे - धीरे गायब हो जाती है। इसलिए ओवेरियन सिस्ट काफी आम हैं। इनमें से अधिकांश नुकसानदेह नहीं होती और उपचार की भी कोई जरुरत नहीं होती । हालांकि, यदि ये बहुत बड़ी हों, या कुछ लक्षण पैदा हो रहे हों, तो इनके लिए उपचार की जरुरत होती है ।साधारण गांठ आमतौर पर आपके गर्भवती होने की क्षमता पर असर नहीं डालती।
अंडाशय की गांठ का आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट मौजूद है। आयुर्वेद में किसी भी बीमारी का बिना शल्य चिकित्सा के उपाय किया जाता है । अंडाशय की गांठ के लिए भी आयुर्वेद में पंचकर्मा विधि को अपनाया जाता है। आइए जानते है पंचकर्मा विधि से कैसे किया जाता है
सिस्ट का इलाज ( Ayurvedic Treatment for Ovarian Cysts )
वमन क्रिया - गलत खानपान की वजह से शरीर में कई विषाक्त पदार्थ जमा हो जाते है आयुर्वेद में वमन क्रिया - उल्टी की इस पद्धति के द्वारा मरीज को बार बार वमन करने के लिए ओषधि दी जाती है ताकि विषाक्त पदार्थों को वमन के द्वारा बाहर निकल सके और शरीर सक्रिय होकर काम कर सके । और जिन लोगों को अस्थमा की शिकायत होती है । उनको भी पंचकर्मा विधि से काफी फायदा मिलता है । और सिस्ट में भी काफी आराम मिलता है ।
पंचकर्मा विधि का दूसरा स्टेप विरेचन - इस प्रक्रिया में मल के द्वारा शरीर के दूषित अवयवों को बाहर निकाला जाता है ।इस प्रक्रिया में आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों से निर्मित औषधि रोगी को सेवन करवाया जाता है जिससे मल के माध्यम से शरीर के सारे विषाक्त पदार्थ बाहर निकल सके और शरीर अधिक सक्रिय होकर काम कर सके ।
तीसरी प्रक्रिया नश्य - इस प्रक्रिया में रोगी के नाक में आयुर्वेदिक ड्रॉप्स डाला जाता है जिससे मस्तिष्क के दूषित पदार्थ नाक के रास्ते बाहर आ जाते हैं । जिन लोगों को डिप्रेशन की समस्या होती है उनके लिए यह पद्धति बहुत कारगर साबित होती है ।और अंडाशय सिस्ट भी इन्हीं समस्याओं में से एक जिसका संबंध डिप्रेशन से भी है ।
चौथी प्रक्रिया अनुवासन वस्ती - इस प्रक्रिया में शरीर को पौष्टिक आहार दिया जाता है वास्तव में तो यह प्रक्रिया पंचकर्म विधि का मुख्य आधार माना गया है पोस्टिक आहार खाने से रोगी में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और ज्यादा ऊर्जावान होकर शरीर कार्य करने लग जाता है । सिस्ट का संबंध भी कहीं न कहीं हमारे गलत खानपान से ही शुरू होता है ।
रक्तमोक्षण - इस प्रक्रिया में आपके शरीर में आयुर्वेदिक औषधि से शरीर के खराब खून को साफ किया जाता है जिससे शरीर में रक्त संचार बढ़ता है और शरीर ऊर्जावान बनकर नई सेल्स पैदा करता है।
योग क्रिया - इस क्रिया के माध्यम से अण्डाशय की गांठ का सफल इलाज किया जाता है पर यह क्रिया कुशल एक्सपर्ट की देखरेख में ही की जानी चाहिए । सही तरीके से योग अपनाने पर तीन से चार महीने में नतीजा सामने आ जाता है ।
इसके अलावा कुछ घरेलू उपाय भी है जिसको अपनाने से सिस्ट की प्रॉब्लम में राहत मिलती है । तो इस प्रकार है :-
दही का सेवन - दही के सेवन से पेट की सभी समस्याओं से राहत मिलती है ।
अदरक का सेवन - आयुुुर्वेद के अनुसार अदरक के सेवन से सूजन में भी राहत मिलती है और मरीज को इसके सेवन से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकाश होकर सिस्ट को घटाने में सहायता मिलती है ।
Successful Ovarian Cyst Treatment in ayurveda
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