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क्या एंडोमेट्रियोसिस ओवुलेशन में बन सकता है समस्या और कैसे एंडोमेट्रियोसिस को आयुर्वेदिक इलाज से ठीक किया जाता है?

आज की जीवन शैली एवं खराब खानपान की वजह से भारत में महिलाओं को इनफर्टिलिटी से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में देश में लाखों जोड़ो को निःसंतानता का शिकार होना पड़ रहा है। ऐसी ही एक इनफर्टिलिटी से जुड़ी समस्या है, जिसका नाम है एंडोमेट्रियोसिस । महिलाओं में एंडोमेट्रियोसिस की परेशान तब होती है। जब महिलाओं के अंडाशय, बाउल और पेल्विक की बच्चेदानी के ऊतको पर एंडोमेट्रियल टिश्‍यू वृद्धि करने लगते हैं। 

एंडोमेट्रियल टिश्‍यू जब फैलोपियन ट्यूब और अंडाशय के भीतरी भागों में बढ़ने लगते है। तो महिलाओं में अत्यधिक पीड़ा का सामना करना पड़ता है। साथ ही महिलाओं के पीरियड्स भी अनियमति (abnormal menstruation/retrograde menstruation) हो जाते है। 

इनफर्टिलटी से संबंधित एक स्टडी से पता चलता है। कि करीब 40 प्रतिशत महिलाओं को एंडोमेट्रियोसिस के कारण कंसीव करने में दिक्कत जाती है। एंडोमेट्रियोसिस का सामना कर रही महिलाएं बताती है । कि जब उनके पीरियड्स आते हैं। तब उन्हें सबसे ज्यादा दर्द होता है। यह एंडोमेट्रियम टिश्यू यूट्रस के टिश्यू की तरह ही होते है। परंतु यह जब मासिक धर्म से दौरान रक्त प्रवाह के साथ बाहर नही जा पाते है। जिसके कारण ओवरी में तेज दर्द होता है। इसके कारण महिलाओं की इनफर्टिलिटी पॉवर में कमी आती है और वह गर्भधारण नही कर पाती है। 

 

एंडोमेट्रियोसिस ओवुलेशन में बन सकता है समस्या

एंडोमेट्रियोसिस एक ऐसी बीमारी है जिसमें गर्भाशय का अस्तर जिसे एंडोमेट्रियम कहा जाता है, गर्भाशय के बाहर बढ़ने लगता है जो आसंजन (adhesion) का कारण बनता है। ये आसंजन (adhesion) बाद में प्रजनन अंगों के रुकावट का कारण बनते हैं और अंग आपस में चिपक सकते हैं। मासिक धर्म चक्र के दौरान, शरीर कई हार्मोनल परिवर्तनों से गुजरता है जो एक निषेचित अंडे की तैयारी के लिए गर्भाशय की परत में वृद्धि का कारण बनता है। इस समय के दौरान, हार्मोन गर्भाशय की परत को बहा देते हैं। परंतु एंडोमेट्रियोसिस में ऐसा नही हो पाता है और यही परत टिश्यू के रुप में धीरे-धीरे मोटी होती चली जाती है। 

एंडोमेट्रियोसिस होने पर महिलाओं का मासिक धर्म पूरी तरह से प्रभावित हो जाता है। जिससे ओवुलेशन की प्रकिया भी बाधित होती है। और यदि महिला का ओवुलेशन नही हो पाता है । को कंसीव करना बड़ा मुश्किल होता  है। 

ओवुलेशन होने के लिए पीरियड्स का नियमित होना जरुरी होता है। और एंडोमेट्रियोसिस की समस्या में पीरियड्स ठीक से नही हो पाते है। जिससे ओवुलेशन की संभावना बहुत कम होती है और महिलाएं इनफर्टिलिटी का शिकार हो जाती है। यदि ओवुलेशन हो भी जाता है तो महिलाएं इसे समय पर ट्रक नही कर पाती है। 

एंडोमेट्रियोसिस के कारण – 

डॉ चंचल शर्मा के अनुसार एंडोमेट्रियोसिस होने का सबसे बड़ा कारण असामान्य मासिक धर्म चक्र होता है। इस दौरान एंडोमेट्रियल कोशिकाएं पीरियड्स के समय महिलाओं की ओवरी से बाहर नही निकल पाती है। बल्कि कैविटी के रुप में फैलोपियन ट्यूब की नली में जाकर इकाट्ठी हो जाती है और टिश्यू का रुप ले लेती है और ओवुलेशन की प्रक्रिया में बाधा बन जाती है। 

जब कोई महिला सी-सेक्सन (सर्जरी) से होकर गुजरती है तो फैलोपियन ट्यूब में कुछ स्कार (निशान) पड़ जाते है या फिर ये कहें की एंडोमेट्रियल कोशिकाएं कुछ प्रजनन अंगों से चिपक जाती है । जिससे एंडोमेट्रियोसिस की समस्या होने लगती है। 

जब महिलाओं की इम्युनिटी में कमजोरी आने लगती है तो रोगों से लड़ने की क्षमता कमजोर होने लगती है। ऐसे में एंडोमेट्रियल टिश्यू कमजोर इम्यूनिटी के चलते संक्रमण को शिकार आसानी से हो जाते है। जिससे एंडोमेट्रियोसिस की बीमारी हो जाती है। 

 

महिलाएं कैसे करें एंडोमेट्रियोसिस से अपना बचाव – 

एंडोमेट्रियोसिस ज्यादातर 25 से 35 साल की उम्र की महिलाओ को प्रजनन वर्षों के दौरान होता है। परंतु कुछ केशों में कम उम्र की महिलाएं (लड़कियांं) के पीरियड्स शुरु होते हैं।  वेैसे ही एंडोमेट्रियोसिस के लक्षण शुरू हो सकते हैं।

यह अक्सर ऐसा समय होता है जब एक महिला अपना जीवन बनाने की कोशिश में व्यस्त होती है। यदि कम उम्र में लड़कियों को इसकी समस्या हो जाती है तो उनकी स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई में दिक्कत होती है । कुछ लड़कियां तो इस समस्या के कारण स्कूल व कॉलेज तक छोडने को मजबूर हो जाती है तथा कामकाजी महिलाओं को जीवन भी एंडोमेट्रियोसिस के कारण बुरी तरह से प्रभावित होता है। 

 

आयुर्वेद के अनुसार यदि आप कुछ बातों को ध्यान में रखती हैं। तो आप एंडोमेट्रियोसिस के दर्द का बचाव करने के साथ-साथ इसको जड़ से खत्म करने में भी कामयाब हो सकती हैं। 

  1. हेल्दी डाइट  लें – आयुर्वेद शुरु से हो स्वस्थ आहार पर सभी का ध्यान आकर्षित करता आया है और आज भी हेल्दी डाइट लेने पर पूरा जोर देता है।  डॉ चंचल शर्मा के अनुसार, एक anti inflammatory diet एंडोमेट्रियोसिस के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकती है। इसका मतलब है कि एक अच्छी तरह round diet पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।  जिसमें ताजा फल, हरी सब्जियां और साबूत अनाज, औ जैसे पूरे खाद्य पदार्थ शामिल हैं। अपने आहार में ओमेगा -3 फैटी एसिड में उच्च खाद्य पदार्थ भी शामिल करें, जैसे कि एवोकाडो, नट्स, जैतून का तेल और नट्स, क्योंकि ये सूजन को कम करने में मदद करते हैं। 
  2. एक्टिव रहें – दर्द होने पर हो सकता है कि आप व्यायाम नहीं करना चाहेंगी। लेकिन जब दर्द न हो तो दिन में कम से कम 30 मिनट चलने की कोशिश करें। आयुर्वेद के अनुसार, सक्रिय रहने से डिम्बग्रंथि उत्तेजना और एस्ट्रोजन उत्पादन को कम करने में मदद मिल सकती है, जो बदले में एंडोमेट्रियोसिस के लक्षणों को दूर करने में मदद करता है। इसलिए प्राचीन काल से इस बारे में कहता जाता है। कि गतिहीन जीवनशैल बहुत सारी बीमारियों को न्यौता दे सकती है। 

आयुर्वेद इस बात पर ध्यान केंद्रित करता है कि एंडोमेट्रियोसिस के कारण एक महिला को कौन सी प्राथमिक समस्या का सामना करना पड़ता है। आकलन करें कि दर्द इनफर्टिलिटी है या दोनों, और उसके अनुसार उपचार को समायोजित करें। 

सामान्य स्वास्थ्य और प्रतिरक्षा पर जोर दिया जाता है। एंडोमेट्रियोसिस वाली महिलाओं में रुमेटीइड गठिया होने की अधिक संभावना होती है, और शामक और वासोडिलेटर जैसी दवाओं का उपयोग किया जा सकता है। 

पित्त पथरी को भी उपचार में माना जाता है क्योंकि उनमें रक्त को पतला करने का प्रभाव होता है। इन पर ध्यान दें 26 साल से कम उम्र के पहले बच्चे को जन्म दें और उसे स्तनपान कराएं। महिला हार्मोन एस्ट्रोजन युक्त खाद्य पदार्थों से बचें या नियंत्रित करें। 

जीवनशैली और आहार में बदलाव करें –

उचित व्यायाम करें, समय पर पर्याप्त नींद लें और अपनी भूख के अनुसार संयम से भोजन करें। परिवार में रक्त संबंधियों वाली महिलाओं को भी यही समस्या होने पर चिकित्सकीय जांच कराने की सलाह दी जाती है।