A critical appraisal on Swarnaprashana in children

संक्रमण के दौरान  में आर्युवेद (स्वर्णप्राशन) से कैसे  रखें अपने बच्चों का ख्याल ?

फ्लू या फिर संक्रमण (कोविड-19, डेल्टा वैरियेंट और ओमिक्रॉन) में बच्चों की देखरेख करना बहुत ही जरुरी होता है। आयुर्वेद में स्वर्णप्राशन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा बच्चों की इम्युनिटी में वृद्धि करके उनकी विकास दर में तेजी लाई जा सकती है और उनकी मानसिक तथा बौद्धिक क्षमता का विकास तेजी के साथ किया जा सकता है। 

आयुर्वेद में बच्चों के शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक स्तर के विकास के लिए विभिन्न संस्कारों का वर्णन किया गया है। ताकि आने वाली पीढ़ी बुद्धिमान, सक्षम, तेजस्वी और सर्वशक्तिमान हो सके। इन 16 संस्कारों में से सुवर्णप्राशन बच्चों के लिए किया जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण संस्कार है।

आयुर्वेद की काश्यप संहिता में स्वर्णप्राशन संस्कार से संबंध में उल्लेख मिलता है। कि 

सुवर्णप्राशन ही एतत मेधाग्नी बलवर्धनम | आयुष्यं मंगलम पुण्यम वृष्यम वर्ण्यम ग्रहापहम ||

मासात परम मेधावी व्याधीभिर्नच धृष्यते | षडभिरमासै: श्रुतधर सुवर्णप्राशनाद भवेत ||

अर्थात -

सुवर्णप्राशन के सेवन से बालक मेधावी एवं बालवान होता है। लंबी आयु और तेजस्वी बनता है। यह संस्साकर सोलह संस्कारों में से सबसे प्रधान संस्कार माना जाता है। 

 

हम सभी जानते हैं कि आयुर्वेद एक प्राचीन भारतीय चिकित्सा प्रणाली है। और आयुर्वेद इस संस्कृति से जुड़ा है। बच्चे के जन्म के बाद भी हम सोने की छड़ी से शहद की मदद से बच्चे की जीभ पर ओम लिखते हैं। ताकि बच्चे की बुद्धि और पठन-पाठन मेधावी बनने में मदद करें। चूँकि आजकल  फिर से ये सभी उपाय पुनः चलन में आने लगे हैं। इसलिए पुष्य नक्षत्र के दिन बच्चों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए औषधीय घी + शहद + शुद्ध सोने की भस्म का मिश्रण बच्चों को दिया जाता है। इसे "लेहन" भी कहा जाता है। लेहन का शाब्दिक अर्थ है "चाटना" । 

आयुर्वेदिक औषधीय घी में क्या होता है?

जैसे हम दूध से घी बनाते हैं, उसी प्रकार आयुर्वेद में घी को एक-एक करके सिद्ध किया जाता है, इसलिए इसमें गाय का घी लिया जाता है और घी बनाने के लिए आयुर्वेद से कुछ जड़ी-बूटियों जैसे शतावरी, ब्राह्मी, वेखंड, जेष्टमाध, कोष्ट और कुछ अन्य जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया। यह सिद्ध घी पचने में बहुत आसान है और बच्चों की ग्रहणशीलता और समझ बढ़ाने में बहुत उपयोगी है।

सुवर्णप्राशन संस्कार कब किया जाता है ?

आयुर्वेद एवं भारतीय संस्कृति के अनुसार हर 27 दिन में एक नक्षत्र पुष्य होता है और इसे बहुत शुभ माना जाता है। पुष्य का अर्थ है पोषण। वैदिक शास्त्रों में इसे नक्षत्रों का राजा कहा गया है। पुष्य नक्षत्र वह नक्षत्र है जो शुभ, शक्ति और ऊर्जा देता है। इस दिन किया गया कोई भी कार्य बड़ा फल देता है। इस दिन ग्रहण शक्ति सबसे अधिक होती है इसलिए बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए पुष्य नक्षत्र के दिन यह औषधि बनाकर बच्चों को दी जाती है। 

बच्चे कितने साल के बच्चों को स्वर्णप्राशन दिया जाता है?

आयुर्वेद के अनुसार एक साल से लेकर 12 साल तक के बच्चों को स्वर्णप्राशन संस्कार के अंतर्गत उनको आयुर्वेदिक औषधियों से युक्त खुराक दी जाती है।

सुवर्णप्राशन संस्कार से बच्चों को कौन-कौन से लाभ होते है?

आयुर्वेद शास्त्र एवं भारतीय संस्कृति में सोलह संस्कारों को विधान होता है। उन्हीं सोलह संस्कारों में से सुवर्णप्राशन संस्कार बच्चों की दीर्धायु एवं अच्छे स्वास्थ्य विकास के लिए किया जाता है। 

  1.  सुवर्णप्राशन संस्कार बच्चों की इम्युनिटी बढ़ाता है ।
  2. सुनने और बोलने की क्षमता को बढ़ाता है। 
  3. बुद्धि, स्मृति और समझ को बढ़ाता है। 
  4. पाचन में सुधार करता है, भूख बढ़ाता है और शरीर को ठीक से साफ करता है । 
  5. एक बच्चा जिसे स्तन का दूध नहीं मिलता है या कम मिलता है।
  6. त्वचा की चमक में सुधार करता है । 
  7. ऊंचाई और वजन बढ़ाने में मदद करता है।
  8. दांत निकलने की परेशानी को कम करता है।
  9. शब्दों का स्पष्ट उच्चारण होता है, शब्द समझने की क्षमता बढ़ती है
  10. जलवायु और मौसम परिवर्तन से होने वाली बीमारियों से बचाता है।
  11. अन्य बच्चों की तुलना में सुवर्णप्राशन लेने वाले बच्चे बहुत तेज, स्वस्थ और प्रभावशाली बनते हैं।

सुवर्णप्राशन की  दवा कितने दिन देनी चाहिए?

उपरोक्त श्लोक में बताए अनुसार कम से कम छह महीने तक लगातार दवा देनी चाहिए।

सुवर्णप्राशन लेने के बाद बच्चे का कैसे ख्याल रखना है?

इसके लिए पेरेंट्स को कोई खास ख्याल रखने की जरूरत नहीं है। यदि किसी अनुभवी आयुर्वेदिक चिकित्सक द्वारा दवा ली जाती है तो किसी विशेष देखभाल की आवश्यकता नहीं होती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि दवा तैयार करते समय डॉक्टर को विशेष ध्यान रखना पड़ता है। यानी सभी दवाओं की खुराक और निर्माण की विधि और समय बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं। 

 

क्या सुवर्णप्राशन से बच्चों को कोई परेशानी होती है?

आयुर्वेद में स्वर्ण भस्म बनाने की एक विशेष विधि सुवर्णभस्म है। इसके अनुसार इसे जलाने से हृदय और मस्तिष्क के स्वास्थ्य में सुधार होता है। यह पाचन की शक्ति को बढ़ाता है और शरीर में नई कोशिकाओं के निर्माण में भी मदद करता है। पाचन में सुधार करने के लिए सुवर्णप्राशन का उपयोग औषधि में किया जाता है और इसे अन्य आयुर्वेदिक औषधीय बूंदों के साथ मिलाया जाता है। इसके लेने से बच्चों में किसी भी प्रकार की परेशानी नही होती है। 

क्या सुवर्णप्राशन संस्कार से प्रीम्च्योर पैदा हुए बच्चे को फायदा होता है?

जो बच्चे समय से पहले पैदा हो जाते है। उनको सुवर्णप्राशन अनुष्ठान वजन और ऊंचाई बढ़ाने में बहुत लाभ दिखाता है। ये पदार्थ शिशु के शारीरिक और मानसिक दोनों विकास में देखे जाते हैं।

 

क्या मोटापे से ग्रस्त बच्चों को सुवर्णप्राशन करना चाहिए?

चूंकि इसके घटक पाचक पदार्थ हैं, यह शरीर में प्रवेश करने के बाद अग्न्याशय के कामकाज की सुविधा प्रदान करता है।

नोट: केवल इस मामले में, डॉक्टर की सलाह से खुराक का फैसला किया जाना चाहिए।

क्या फास्टफूड (जैसे नूडल्स, पास्ता, बिस्कुट, कोल्ड ड्रिंक) खाने वाले बच्चों को सुवर्णप्राशन अनुष्ठान से लाभ होता है?

बेशक, क्योंकि सुवर्णप्राशन पाचन शुरू करता है और बच्चे को अच्छी भूख लगती है और बच्चे नूडल्स, पास्ता आदि पर जोर दिए बिना मां के निर्देशों का पालन करते हैं।

सुवर्णप्राशन का सेवन कितने दिनों तक करना चाहिए?

जी हाँ, एक बार सुवर्णप्राशन देने से कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि इसमें दवा की मात्रा सुवर्णा भस्म के कारण बहुत ही कम मात्रा में दी जाती है। इसके लिए कम से कम 6 माह तक नियमित रूप से सुवर्णप्राशन देना चाहिए। इसे अगले 1-2 साल तक नियमित रखा जाए तो बहुत अच्छे परिणाम देखने को मिलते हैं।

क्या सुवर्णभस्म का स्वाद कड़वा / मसालेदार होता है? यदि हां, तो बच्चों को इसे लेने के लिए कैसे तैयार करें?

यदि औषधीय घी और शहद के साथ दिया जाए तो सुवर्णभस्म का स्वाद सुवर्णभस्म जैसा नहीं लगता। साथ ही शहद औषधि को बहुत मीठा बनाता है और छोटे बच्चों को भी शहद बहुत पसंद होता है।

क्या सुवर्णप्राशन संस्कार के कोई दुष्प्रभाव(साइड इफैक्ट) होता हैं?

यह दवा बिना किसी दुष्प्रभाव के ली जा सकती है क्योंकि इसमें बहुत सावधानी से शुद्ध सोने की राख, गाय का घी और शहद होता है।

क्या यह संभव है कि सुवर्णप्राशन संस्कार करने के बाद भी शिशु की स्थिति में सुधार न हो? अगर ऐसा है तो क्या किया जा सकता है?

ऐसा इसलिए हो सकता है, क्योंकि अगर बच्चे को कोई और बीमारी है तो उसे सुवर्णप्राशन के साथ अन्य दवाएं भी लेनी पड़ सकती हैं। इसके लिए अपने बच्चे को डॉक्टर की देखरेख में दवा देना जरूरी है

क्या लड़के और लड़की के सुवर्णप्राशन संस्कार में कोई अंतर है?

नहीं, दवा में या उम्र के साथ कोई और बीमारी होने पर ही खुराक बदल सकती है ।यह बदलाव लड़के या लड़की के अनुसार नहीं पाया जाता है।

यदि बच्चा किसी अन्य बीमारी की दवा ले रहा है तो क्या "सुवर्णप्राशन" करना संभव है?

बेशक, अन्य दवाओं के साथ इसका इस्तेमाल करने में कोई बुराई नहीं है।

क्या विदेशों में रहने वाले बच्चों के लिए सुवर्णप्राशन का कोई विकल्प है जहां आयुर्वेदिक उपचार या दवा उपलब्ध नहीं है?

इसके लिए कोई वैकल्पिक चिकित्सा नहीं है, लेकिन आप विदेश में भी सुवर्णप्राशन प्राप्त कर सकते हैं।

संपूर्ण "सुवर्णप्राशन संस्कार" उपचार पद्धति की औसत लागत क्या है?

लगभग इसकी कीमत  रु. 200-500 रुपये तक हो सकती है। यह सब चिकित्सक एवं स्थान  पर निर्भर करता है।